STORYMIRROR

डायरी

डायरी

1 min
14.3K


फिर से पलट रहा हूँ, ज़िन्दगी के उन अधूरे पन्नों को
ये डायरी कुछ ज़्यादा ही पुरानी हो गयी है!
इन दीमक लगे हुए पन्नों को देखकर लगता है,
शायद यादों में ही दीमक लग गए हैं!
कितने किस्से समेटे बैठे हैं ये पन्ने,
कुछ कहानियां अधूरी भी हैं!
मन तो बहुत है इन्हें पूरा करने का,
पर अब तो वो पुरानी कलम ही नहीं है!
सोचता हूँ लिख तो डालूँगा इन्हें,
पर तुम्हारी नज़रों से ये अधूरापन साफ दिख जायेगा!
फिर समझ आता है कल तक जो लोग,
मेरी कहानियों का हिस्सा थे!
वो सब के सब तो कहीं खो गए हैं,
शायद किसी दूसरे के किस्सों में!
चलो कुछ नया ही लिख लेता हूँ तुम्हारे लिए,
किरदार नए होंगे पर पढ़ कर इसे तुम समझ जाओगे,
मेरे जहन में सब आज भी वैसा ही है,
जैसा तुम छोड़कर गए थे बहुत पहले...


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract