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अंजलि सिफ़र

Inspirational

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अंजलि सिफ़र

Inspirational

ए नारी तुम्हारा सम्मान

ए नारी तुम्हारा सम्मान

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यूँ तो माँ की कोख से बाहर निकलना भी है तुम्हारे लिए दुष्कर

कोख में तुम्हें रखने को भी तुम्हें ही रहना पड़ता है सबकी दया पर

मगर एक बार जो इस दुनिया में तुम आ गई

मोह लिया सबको अपनी निश्छल मुस्कान और

स्नेहिल ह्रदय से सबके मन को भा गई

बन गई उन्हीं आंखों का तारा जिन्हें तुम्हें लाना भी न था गवारा

किया नाम सबका रोशन महकाए कितने गुलशन

ऐ नारी तुम्हारा सम्मान !


छोड़ दी अपनी अमिट छाप पर्वतों की चोटियों पर

समन्दर की गहराइयों में कल्पना बन उड़ी

तुम अंतरिक्ष की भी ऊंचाइयों में ज़मीं, आकाश,

क्षितिज के भी उस पार हर जगह अंकित कर लिया है अपना नाम

आंखों में अब पानी नहीं सपने संजो रखे हैं तुमने

और आँचल में उन्हें पूरा करने का अरमान

ऐ नारी तुम्हारा सम्मान !


एक नहीं कई घरों को संवारती हो

तुम बाहर का भी मोर्चा ख़ूब सम्भालती हो तुम

और हां, घर का काम भूल कर नहीं निपटा कर निकलती हो

तुम माँ, बहू और पत्नि के फ़र्ज़ भी निभा कर निकलती हो तुम

तुम चाँद की हो चाँदनी सूर्य की हो किरण फूलों की वो ख़ुश्बू

जो महकाए कण कण तुम आस्था हो विश्वास हो धैर्य का साथ हो

सृष्टि की रचना में भगवान का हाथ हो

ऐ नारी तुम्हारा सम्मान ! ऐ नारी तुम्हारा सम्मान !


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