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अंजलि सिफ़र

Abstract

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अंजलि सिफ़र

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छलका नहीं करता

छलका नहीं करता

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भरी महफ़िल में ये मुझको कभी रुसवा नहीं करता

मेरी आँखों का पैमाना यूँ ही छलका नहीं करता।


जो चिल्लाये यकीं उसकी किसी भी बात पर मत कर

गरजता है जो बादल वो कभी बरसा नहीं करता।


बदल दे ये सदी को भी अगर आ जाये वक़्त उसका

ये लम्हा है किसी के भी लिए ठहरा नहीं करता।


झुलाये बिटिया को झूले जो याद आते हैं उसको भी

मगर वो बाप का दिल है कभी रोया नहीं करता।


वतन की मिट्टी से कह दो न देखे राह अब उसकी

गया परदेस जो इक बार वो लौटा नहीं करता।


नज़र आती है जब उसको मेरे बच्चों की फरमाइश

शिकायत फिर मेरा टूटा हुआ चश्मा नहीं करता।


ज़रा सोचो ज़रा समझो ज़ुबाँ तब ही 'सिफ़र' खोलो

जो निकले तीर तरकश से वो फिर पलटा नहीं करता।


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