ए इंसान
ए इंसान
आज के मेरे अल्फ़ाज़ थोड़े से क्रूर हैं,
मगर आज की इस हकीकत की सच्चाई से भरपूर हैं।
यहां इन्सानों की क्या, जानवरों की कदर नहीं होती,
ए इंसान तेरी इस इंसानियत से तो कुत्ते की कुतानियत भाली होती ।
ए इंसान तू देश के जातिवाद में प्रेम के वादे करता है,
अरे यहां पराए धर्म क्या, पराई जात में कोई अपनी बहन बेटी नहीं देता,
और तू हिंदू मुसलमान के मेल की बात करता है।
इस दौर में जाती और धर्म हज़ार हैं, बांटा उस ऊपरवाले ने नहीं तुझे,
ए इंसान तू खुद इस फांसले का ज़िम्मेदार है।
ए इंसान तू जहां मंदिर में देवी को पूजता है,
वहीं हमारी साक्षात देवी की आबरू उतारता है,
अब क्या क्या कहूं तेरे बारे में ए इंसान,
तू न जाने क्यों इस हैवानियत को पूजता है।
हम कहते हैं जिसमें सांसे नहीं वो मुर्दा हैं,
मगर ए इंसान जिसमें इंसानियत नहीं क्या वो जिंदा है।
रंग चाहे कैसा भी हो, लहू तो सबका लाल है,
ए इंसान तू क्यूं अपनी इंसानियत से अनजान है।
क्यूं लड़ता है तू और क्या चाहता है,
खून किसी का तू क्यूं बहाता है।
हो हिन्दू मुस्लिम या सीख, इसाई,
इंसान तो आखिर इंसान है भाई।
जान चाहे किसी की भी हो, जान तो आखिर जान है,
ए इंसान तू क्यूं इस सब से अंजान है।
बिछड़ जाए अगर तुझसे कोई अपना, तो गम तो तुझे भी होगा,
रूह को निकलेगी तेरी, तो दर्द तो तुझे भी होगा।
चल इस सब से परे एक नया जहान बनाते हैं,
अपने इस पृथ्वी लोक को पाताल लोक बनने से बचाते हैं,
अपने इस पृथ्वी लोक को पाताल लोक बनने से बचाते हैं!