दूर से सलाम करते हैं
दूर से सलाम करते हैं


टपकी जब उसकी आंखों से बूंद तो यूँ लगा के,
आज जज्बात बिखर ही जायेंगे !
हैरत मुझे तब हुई जब उसने खुद को संभालकर
होठों पर झूठी मुस्कान की रोशनी बिखेर दी !
मुमकिन नहीं अब हर वक्त
अल्फाजों को दर्द का सहारा बनाना !
कुछ दर्द अब हम अपनी पलकों में छुपाए रखते हैं !
हँसते है जब हम न उम्मीद मौकौं पर,
लोग तब भी हमारी हँसी के कायल रहते हैं !
कमजोरी है हमारी उन महफिलों में जाना,
जहां लोग हमारा इंतजार करते हैं !
मतलबी और बैगानों की महफिलों को तो हम वैसे ही,
दूर से सलाम करते हैं !