श्रमिक
श्रमिक
देखती हूँ, अक्सर कुछ गरीबों को बहुत मेहनत करते हुए
फिर भी उनकी मेहनत का किसी पर कोई उपकार नहीं होता
एक श्रमिक ही है जिसे उसकी मेहनत का सच्चा अंजाम नहीं मिलता
बनाकर बड़ी बड़ी इमारतें लोगो की, खुद झोपड़ियों में सोता है
चलाकर रिक्शा न जाने कितनो लोगो को उनके महलो तक छोड़ता है
फिर भी उसका खुद कोई ख़ास ठिकाना नहीं होता
एक श्रमिक ही है जिसे उसकी मेहनत का सच्चा अंजाम नहीं मिलता
उठाकर बोझा जो सबका वजन कम करता है
थका हुआ चेहरा और गम्छे से पसीन टपकता है
फिर भी लोगो को उसके कंधो का भार नहीं दिखता
एक श्रमिक ही है जिसे उसकी मेहनत का सच्चा अंजाम नहीं मिलता
अपने शोक के लिए लोगो को महंगे जगह पर खाना खाना अच्छा लगता है
लकिन एक गरीब को १० रूपए ज्यादा देना भी न जाने क्यों इतना अखरता है
बर्दास्त करता है जो गरीबी में ये सारी चीजे
फिर भी उसके मुँह पे बद्दुआओं का भाव नहीं होता
एक श्रमिक ही है जिसे उसकी मेहनत का सच्चा अंजाम नहीं मिलता
समय से काम पर न पहुँचने पर पारिश्रमिक काट लिया जाता है जिसका
बहुत लोगो द्वारा मेहनत का पैसा मार लिया जाता है जिसका
पूरा दिन काम करके भी जिसे चंद पल का आराम नहीं मिलता
एक श्रमिक ही है जिसे उसकी मेहनत का सच्चा अंजाम नहीं मिलता
सर झुककर सबको सलाम करने में
सबके इशारो पे नाच कर भी, जो कभी परेशान नहीं होता
फिर भी बदले में उसे, उन्हीं लोगों से शब्दो में सम्मान नहीं मिलता
एक श्रमिक ही है जिसे उसकी मेहनत का सच्चा अंजाम नहीं मिलता
श्रमिको के हक के लिये बाते तो सब करते है
पर किसी के आवाज उठाने पर कोई साथ नहीं देता
यकीनन इसीलिए उनका कभी न्याय नहीं होता
एक श्रमिक ही है जिसे उसकी मेहनत का सच्चा अंजाम नहीं मिलता
बच्चो को शिक्षा का अधिकार ये सबका मानना है
लकिन श्रमिक की औलाद श्रमिक ही बनेगी ये सोचना भी किसी को बेकार नहीं लगता
शायद इसीलिये उनकी औलाद के जीवन में कोई चमत्कार नहीं होता
एक श्रमिक ही है जिसे उसकी मेहनत का सच्चा अंजाम नहीं मिलता