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AJAY AMITABH SUMAN

Abstract

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AJAY AMITABH SUMAN

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दुर्योधन कब मिट पाया: भाग:27

दुर्योधन कब मिट पाया: भाग:27

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एक प्रत्यक्षण महाकाल का और भयाकुल ये व्यवहार ?

मेघ गहन तम घोर घनेरे चित्त में क्योंकर है स्वीकार ?

जीत हार आते जाते पर जीवन कब रुकता रहता है?

एक जीत भी क्षण को हीं हार कहाँ भी टिक रहता है?


जीवन पथ की राहों पर घनघोर तूफ़ां जब भी आते हैं,

गहन हताशा के अंधियारे मानस पट पर छा जाते हैं।

इतिवृत के मुख्य पृष्ठ पर वो अध्याय बना पाते हैं,

कंटक राहों से होकर जो निज व्यवसाय चला पाते हैं।


अभी धरा पर घायल हो पर लक्ष्य प्रबल अनजान नहीं,

विजयअग्नि की शिखाशांत है पर तुम हो नाकाम नहीं।

दृष्टि के मात्र आवर्तन से सूक्ष्म विघ्न भी बढ़  जाती है,

स्वविवेक अभिज्ञान करो कैसी भी बाधा हो जाती  है।


जिस नदिया की नौका जाके नदिया के ना धार बहे,

उस नौका का बचना मुश्किल कोई भी पतवार रहे ?

जिन्हें चाह है इस जीवन में ईक्छित एक उजाले की,

उन राहों पे स्वागत करते शूल जनित पग छाले भी।


पैरों की पीड़ा छालों का संज्ञान अति आवश्यक है,

साहस श्रेयकर बिना ज्ञान के पर अभ्यास निरर्थक है।

व्यवधान आते रहते हैं  पर  परित्राण जरूरी  है,

द्वंद्व कष्ट से मुक्ति कैसे मन का त्राण जरूरी  है ?


लड़कर वांछित प्राप्त नहीं तो अभिप्राय इतना हीं है,

अन्य मार्ग संधान आवश्यक तुच्छप्राय कितना हीं है।

सोचो देखो क्या मिलता है नाहक शिव से लड़ने में,

किंचित अब उपाय बचा है मैं तजकर शिव हरने में। 


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