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NIBEDITA MOHAPATRA

Abstract

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NIBEDITA MOHAPATRA

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दुनिया

दुनिया

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अजीब बड़ी यह दुनिया है 

दुख को कोई भी समझे ना

राहत की जगह चोट देता 

प्यार क्या है जाने ना ॥


भगवान की श्रेष्ठ सृष्टि है मानव 

सूझ बूझ का ज्ञान नहीं 

सब को धोखा देता ये

इंसानियत जानता नहीं॥


दुख भरी इस दुनिया में 

कोई ना सुख से जीता है 

जो सुख के पीछे भागता है 

वह और भी दुखी होता है ॥


मानवता यहां मर पड़ी है 

ख़ुशियाँ मिट्टी में मिल गई 

जीना सबका दुश्वार हुआ 

दुखों में संसार डूब गई ॥


समझदार अगर ना समझे तो 

अब कौन जहां को संभालेगा 

लोगों को हौसला देकर

सहारा उनका कौन बनेगा ॥


आँसू की सागर में ऊबते 

लोग जान पाते हैं

राहत की इंतजार करते

मरते दम तक रोते हैं ॥


फिर भी दुआ यह करते हैं

सबको दुख से राहत मिले

सब में इंसानियत जाग उठे 

दुनिया में चाहत की दीप जले॥



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