"दृढ़ निश्चय तुम रखना"
"दृढ़ निश्चय तुम रखना"
सृजन का क्रम सतत् चलेगा
नयन भले ही हो जाएं सजल
आस का नभ जगमगाता रहेगा
संताप, रंज, तम होंगे असफल
हृदय में तीव्र बवंडर उठेंगे
भाव के सागर उमड़ते रहेंगे
नयनों के बांध कदाचित टूटेंगे
फिर भी यह निश्चय रहेगा दृढ़
पतझड़ आए जब अनायास
फूल कुम्हलाएं मन के द्वार
सींचना बगिया दृढ़ निश्चय से
प्रकृति न होने देना निढाल
तपते मरु में बहे चाहे अग्नि
धार शीतल जल तुम बहाना
राह के शूलों से मत घबराना
भेद लक्ष्य मंजिल तुम पाना
करते रहना तुम प्रण स्वयं से
कभी न छोड़ना अपनी आस
ले आना रंग प्रकृति के सारे
पुरुषार्थ अपना करते जाना
मन की कोमलता मत भूलना
अश्रुओं को देना अंतिम विदाई
भावना सदा रखना निश्छल
सबके हृदय में स्थान पाना।
