दर्द
दर्द
खुद की इन तन्हाई से,निकल कर बाहर आऊँ कैसे।
दिल बहलाने के लिए क्या क्या करूँ करतब दिखलाऊँ कैसे।
ये ज़िन्दगी का खेल निराला ,दूसरों को खुश करने मे दाव ही दूसरा खेल डाला।
एक तरफ थी यारी दूसरी तरफ तो था सितारा।
चमकती थी दुनिया सारी , ऊपर वाले कैसे तूने मुझे चमका डाला।
सब कुछ दिया था मगर कमी एक की खल रही थी।
यही बीमारी तो अब मुझसे नही पल रही थी ।
