दोस्ती
दोस्ती
ये ज़माना दोस्ती का इस कदर मोहताज़ है
साज़ है चारो तरफ़, जानें कहाँ आवाज़ है
हाँ में हाँ कर झूठ अब रबड़ी-मलाई खा रहा
सत्य है गूंगा हुआ मायूस हर अल्फ़ाज़ है
दोस्ती भामा निभाया प्राण का बलिदान देकर
अब दोस्तों के पेट में ही चल रही मिकराज़ है
रोटियों से जोड़ होता, दाम देकर। तोड़िये
दोस्ती में दाम ही सबसे बड़ी अमराज़ है
मान अपना जिसके दुर्गुण बोल डाले सामने
'देव' तुझसे सबसे ज्यादा अब वही नाराज़ है।
