STORYMIRROR

डाॅ. बिपिन पाण्डेय

Abstract

4  

डाॅ. बिपिन पाण्डेय

Abstract

दोहे

दोहे

1 min
418

जब से ओढ़ी है हँसी, गम का छोड़ लिबास

दुश्मन सारे हो गए, तब से बहुत उदास।


जबसे आया हे सखी, यौवन तन के द्वार

पुरजन परिजन हैं खड़े, बनकर पहरेदार।


नहीं जीतता वह कभी, जीवन का कुरुक्षेत्र

करके रखता बंद जो, कान और निज नेत्र।


श्रम की महिमा का करें, वर्णन सारे वे

गंगाजल से भी अधिक, पावन होता स्वेद।


आओ कुछ ऐसा गढ़ें, हम अपना किरदार

जाए दुनिया छोड़ जब, याद करे संसार।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract