दिन सुहाने
दिन सुहाने
याद हैं मुझे, जिंदगी के वो फ़साने, गाँव के वो दिन सुहाने
चिड़ियों का वो चहचहाना, भंवरों का वो गुनगुनाना
भूलता नहीं, छोटी सी नदी में नहाना ,दोस्तों के संग वो जाना
गुल्ली डंडे की वो ठन ठन, कंचों की वो मधुर खनखन
याद आए, नीम की दातुन चबाना, मीलों मीलों चल के जाना
फूंकनी से चूल्हा जलना, रोटी का वो घी में तलना
भूलूँ कैसे, भैंसों को चारा वो देना, दुह के फिर वो दूध लेना
मटकी में दही को वो मथना, छाछ को फिर जम के चखना
याद आता, मिलजुल कर सांझी सजाना, गोबर से पाथी बनाना
हाथ से टायर चलाना, पानी में वो कूदना और छपछपाना
कभी न भूले, खेतों में ट्रेक्टर चलाना, फसलों को पानी लगाना
ढेले से चिड़िया उड़ाना, आम पेड़ों से चुराना
यादों में है, तारों का वो टिमटिमाना, थक के छत पे वो सो जाना
माँ का घूंघट में वो रहना, सोने का वो एक गहना
भुला न पाऊं, खेतों में वो छुप के मिलना, फूलों का वो झट से खिलना
खेतों की वो हरियाली, शर्म से होठों पे लाली
याद तब की, लोक गीतों के तराने, हम जो थे उनके दीवाने
त्योहारों पे जम के मस्ती, झूमती थी सारी बस्ती
भुला न पाया, बड़ों का आदर वो करना, उनके गुस्से से वो डरना
परम्पराओं को निभाना, सब के दुःख सुख में वो जाना