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Mirza Sanuarbaig

Abstract

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Mirza Sanuarbaig

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दिलचस्प जो भी है

दिलचस्प जो भी है

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दिलचस्प जो भी है

वो ज़ोर- ए - क़़लम है

एक तरफ़ ख़्वाब है

एक तरफ़ हक़ीक़त है

और मैं भी तो हूं यार

कोशिश या क़िस्मत 

क्या  कहूं उसे जो सही बैठे?

इसमें कवि की कल्पना भी तो है

सूरत - ए- हाल जो भी हो

आगे देखा जाएगा .....।


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