दिल की दुकान
दिल की दुकान
अंधेरों में छुपाई
मैंने दिल की एक दुकान है,
ना सिक्कों से ना नोटों से,
सिर्फ एहसासों से चलता ये कारोबार है !
खयालों की चाबी से,
जो खुले वो ऐसा एक मकान है,
रात के खालीपन में,
बस वही तो मेरी हमराज़ है !
नींद से शायद नहीं बनती,
उसकी कोई खास है,
क्यों की खुली आँखों से ही तो,
बिकते वहाँ लाखों ख्वाब है !
कभी सोचा की बेच दूँ,
इसका सारा सामान,
क्यों ना मैं भी चुन लूँ,
वो नौकरी वाली राह आसान !
ढलते ही शाम,
मैंने बदला अपना ख्याल,
रास हमें ना आएगा,
अपने सपनों का व्यापर !
दोस्त कुछ गए मंदिर,
तो कुछ ने चुनी मज़ार,
मैं तो अटका रह गया,
इसी चौक और बाजार !
ना कमाया मैंने ज़्यादा कुछ,
सिर्फ थोड़ी इज़्ज़त और आदाब,
ज़िन्दगी अपनी निकल गई,
जैसे कोई रंगीन किताब !
अंधेरों में छिपाई मैंने,
दिल की एक दुकान है,
ना सिक्कों से ना नोटों से,
सिर्फ एहसासों से चलता ये कारोबार है !
