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Manoj Kumar

Inspirational Thriller

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Manoj Kumar

Inspirational Thriller

दीप

दीप

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 बुझ गई बाती जल गई दिया।

हो गए चारो ओर अंधेरा।

कैसे हरा - भरा मै हो जाऊं।

टूटी फूटी झोपड़ी में मेरा आत्मा घिरा।


मैं अपरिचित किस मिट्टी से बना हूं।

कुम्हार गूंध गूंध कर बनाया।

मै जल गया इक पल के लिए।

कौन मुझे कैसे जलाया।


तन लों मै जल गए।

मन हुआ मेरा अधीरा ।

चमकती हुई रोशनी कैसे प्रज्वलित करूं।

अब बंध गए मोह के कारा।


मुझे काल न मारे मार के।

मै खुद ही मर गया।

जब तक जला मैं शान से।

मैं सबको प्रकाश दे गया।


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