धूप का स्पर्श
धूप का स्पर्श
प्रकृति ने और नव कोंपलों ने,
वृक्ष की शाख-शाख सजाई है।
बासंती कली फूलों की चमन में,
कैसे झूम झूम कर बहार आई है।
पाकर स्पर्श कुनकुनी धूप का,
कलियों ने ली जो अँगड़ाई है।
पुष्प का मुख चूम – चूम कर ,
ये भौरा हुआ कैसा सौदाई है।
धानी चुनर ओढ़कर धरा,
अब देखो कैसे इतराई है।
पिली पिली सरसों सरसाई,
काली कोयल कुहुकुआई है।
सिहरते ठिठुरते हुए सबने ,
फिर धूप की ताकत पाई है।
अब तो दिन भर गगनांचल में,
बसंती पवन ने धूम मचाई है।
नव पल्लव और नव कोंपलों ने,
वृक्ष की शाख-शाख सजाई है।
बासंती कली फूलों की चमन में,
कैसे हुमहुमा कर बहार आई है।