देश के जवान
देश के जवान
छोड़कर घर का सुख, जो सीमा पे जाता है।
दुश्मन की छातियों पे, तिरंगा गाड़ आता है।
नहीं है मोह जीवन का, न फिक्र कल की है।
रणबांकुरों को हमारे, निज देश प्रेम भाता है।
तानकर बंदूक दुश्मन के, पीछे दौड़ आता है।
दिखाकर शौर्य अपना, नदियाँ मोड़ आता है।
भारती की शान पर, कुदृष्टि जो कोई डाले,
तो यमराज बनकर उसे, पाताल छोड़ आता है।
हिमगिरि सा अडिग वो, सीमा पे रहता है।
ओले बर्फ बारिश को, दिन-रात सहता है।
भूलता निज गमों को जब कर्म पथ पर हो,
शान से जयकार, भारत माता की कहता है।
छोड़ आया था घर में, जो मेहंदी के हाथों को।
सपने रहे कुछ अधूरे जिन्हें बुनता वो रातों को।
सुहागन कर उसे, जो अपने घर छोड़ आया है,
वो मुहतोड़ देता जबाब, दुश्मन के घातों को।
छोड़कर घर में अपने, माँ की रोती आंखों को।
बिछुड़न का घाव देकर, नई दुल्हन के भावों को।
अकेले में सिसकता छोड़ आया जो पिता को,
मरहम लगाने वो आया, भारत माँ के घावों को।
देश का हर बच्चा हो सैनिक, मेरा अरमान है।
भारत माँ का हर सैनिक, ही देश की शान है।
हर कतरे पे लहू के,जिसके लिखा है हिंदुस्तान,
वो सैनिक ही मेरा सुख चैन, मेरा अभिमान है।
सैनिक कर्मठ जुझारू, और निष्ठावान होता है।
शौर्य की मिशाल, परम, साहस की खान होता है।
लाख जन्मों को लुटाकर भी न चुका पाए,
वो सैनिक का कर्ज जो अमर बलिदान होता है।
