STORYMIRROR

Karishma करिश्मा

Romance

3  

Karishma करिश्मा

Romance

देखा भी नहीं..

देखा भी नहीं..

1 min
235



तुझ को देखा भी नहीं

जाना पहचाना भी नहीं

फिर भी तू अपना सा बन गया

मेरी निगाहों ने तेरे अक्स को

कभी निहारा भी नहीं

फिर भी इन झुकी हुई पलकों ने

है तुझे अपने में समाया


इसे ख़ुदा की इनायत समझूँ

या अपनी ख़ुशनसीबी जब

पहली दफ़ा तेरी आवाज़

मेरे कानों में इस क़दर गुज़री

मानो उस कुछ पल की गुफ़्तगू में

दुनिया थम सी गई


हाँ, कह सकती हूं मैं

तब तक तुझ को देखा भी नहीं

पर जब हुआ सामना

तेरे अक्स से मेरे अक्स का

मानो दिल थम सा गया

साँसे रुक सी गई

होंठों ने जैसे बोलना ही बन्द

कर दिया हो

बस हल्की सी मुस्कुराहट

इस चेहरे पर थी

जब इन झुकी नजरों ने

तेरा दीदार किया


दिलों-दिमाग में थी बस

यही कश्मकश

कि जो लहरें मेरे भीतर

उफन रही थी

क्या तेरे तन-मन ने भी

किया उनका सामना

मेरे ख़यालात से शायद नहीं

पर थी मैं भी अनजान तेरी

कश्मकश से

होती भी क्यूँ नहीं

तूने कभी जिक्र ही नहीं किया

अब मैं यह नहीं कह सकती कि

तुझ को देखा भी नहीं...



              



Rate this content
Log in

More hindi poem from Karishma करिश्मा

Similar hindi poem from Romance