STORYMIRROR

Bharat Buddhadev

Abstract

5.0  

Bharat Buddhadev

Abstract

डर था तो

डर था तो

1 min
301



पहचान खोने का डर था तो

यूं खुद को अपना बना लिया


चेहरा बदलने का डर था तो

कोई और मोहरा लगा लिया


मौसम बदलने का डर था तो

तूफान को दोस्त बना लिया


जिंदगी बदलने का डर था तो

मृत्यु को मेहमान बना लिया


यूं नरक में जाने का डर था तो

वापस आने का मन बना लिया


यहाँ स्वर्ग खोने का डर था तो

अपने मन को मंदिर बना लिया


कहे "देव" मत रखो कोई डर तो

 अपने ही अंदर ईश्वर समा लिया


Rate this content
Log in

More hindi poem from Bharat Buddhadev

Similar hindi poem from Abstract