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Neelam Sharma

Abstract

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Neelam Sharma

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डोर रिश्तों की

डोर रिश्तों की

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मजबूत डोर होते हैं, अनमोल रिश्तों के धागे

कभी भी जो नहीं टूटे, हैं मजबूत जोड़ ये धागे।


हर समस्या का हैं होते, सफल तोड़ ये धागे

प्रीत का बंधन बांधते हैं, फूलों से नाजुक रिश्तों में।


खुद भी होते हैं नाजुक​ मगर होते बेजोड़ ये धागे

सीपी में होते हैं मोती से, दीपक में जैसे ज्योति से।


अटूट बंधन होते हैं, जिंदगी की प्रीति हैं ये धागे

कभी भाई की कलाई पर बंधते हैं बन प्यार बहना का।


कभी वट सावित्री पूजा कर, पिया संग सात जन्मों का

हैं बनते हर सुहागन का सोलह श्रृंगार यही धागे।


कभी मन्नत-दुआएं बनकर, बंध जाते मंदिर-मज़ारों में

कभी करते हैं अपनों की, हर बुरी नज़र दूर ये धागे।


कभी बनकर के शुभ कंगना, बंधते बन्नी और बन्ने के

कभी गठजोड़ बन जाते हैं, दो दिलों के संयोग से धागे।


कभी कभी मजबूरी में भी हैं बंधते बहुत मजबूत ये धागे

कभी परिवार कभी बच्चे तो कभी खून के रिश्ते

तमाम उम्र हैं निभते निभाते बेजोड़ यही धागे।


नहीं टूटते आसानी से क्योंकि मजबूत होते हैं

मगर विश्वास नहीं हो तो हैं जाते टूट ये धागे।


अगर जोड़ो तो फिर हैं गांठ बन जाते, सुन

नीलम तुझको निभाने हैं बिना तोड़े, ये धागे।


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