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Meena Mallavarapu

Abstract Inspirational

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Meena Mallavarapu

Abstract Inspirational

ढलती उम्र

ढलती उम्र

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उम्र ने तो ढलना है ,ढलने दें इसे!

दिल और दिमाग रहें न तरोताज़ा

ऐसी कोई ताकीद कहां!

शरीर ने तो रंग बदलने ही हैं देर सवेर

जोशीला हो मन,खुशियों की हो सरगम

एक समय था ऐसा , ज़िम्मेदारी थी कांधों पर

सारे घर परिवार की,नौकरी की,चूल्हेचौके की

ज़रूरतें अपनी , शौक अपने रख ताक पर

रखी नज़र घर बार पर, उसकी पक्की नींव पर

समर्पित थे दिन रात अपनी आंख के तारों को

बोझा था भारी ,ढोना था ज़रूरी , था कर्तव्य भी,

स्वेच्छा भी , अपना प्यार दुलार और दरकार भी

चाहते भी गर, बन मस्त मौला घूम आएं

देस परदेस , कर आएं सैर सपाटा ----- छोटी बड़ी

उन खुशियों को दोहराएं जो थीं अपना संसार कभी-

रख दिया परे उन्हें एक ओर--ज़्यादा सोचा भी नहीं

न था गिला कोई कि रह गए हम वंचित खुशियों से!

लेकिन अब वक्त आ गया है विश्लेषण का

क्यों बना लिया है हमने कैदी ख़ुद को यूं स्वेच्छा से

ज़िम्मेदारी तो निभाई जी जान से ,अब कैसी उलझन

आज़ाद हैं अपने बेटे बेटियां , कमा रहे , खा रहे,जी रहे

ज़िन्दगी अपनी ! स्नेह प्रेम की है भरमार!अब वह,वह हैं

और हम,हम!हर एक की पटरी जाएगी अपनी अपनी राह!

हमारा जीवन है फिर से एक बार , हमारे अपने हाथ

इसे सजाना छोटी छोटी खुशियों से है बस अपने ही हाथ

सुकून चांदी की थाली में लेकर न आएगा कोई

जीवन के इस कगार पर हैं आज, समेटें वह खुशियां

जो रख दीं थी ताक पर- उम्र के ढलने का क्या ग़म

बिना किसी अपराध भाव के,उठाएं सपनों की कड़ियां

जोड़ें फिर से , लाएं खुशहाली घर में फिर एक बार

जुड़े रहें स्नेह प्रेम की हर कड़ी से जीवन भर

मगर मायूसी को न दें जगह जाने अनजाने

हर दिन को हम उत्सव समझें

मेल मिलाप का सिलसिला चलता रहे हमेशा

हंसी खुशी क्यों न कटेगा जीवन का सफ़र!



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