ढाई अक्षर
ढाई अक्षर
जो कभी बाते करने के बहाने ढूंढा करते थे,
आज वो बात ना करने के बहाने ढूंढा करते हैं।
जो होंठ कभी दास्तां ए इश्क सुनाया करते थे,
आज वो दास्तां ए दर्द सुनाया करते है।
जो दिन कभी पल से लगा करते थे,
आज वो न जाने क्यों अरसों से लगते है।
जो कभी सबसे प्यारे हुआ करते थे,
आज वो सबसे अनजान लगते है।
जो ढाई अक्षर सारी भावनाएं बयां कर देते थे,
आज वो महज लफ्ज़ बन कर रह गए है।
इश्क का बुखार उतरते सुना था, आज महसूस किया है।
ना चाहते ही सही, हम इश्क के गली से, गुजर तो आयें है।
