चलो निभाए, परंपराएं
चलो निभाए, परंपराएं
बड़े काम के लोक विचार
हमें सिखाते शिष्टाचार
नेग रिवाज कदम कदम पे
ना होती स्वछंदता हावी हम पे
बड़ों का आदर छोटों से प्यार
हो विनम्र दयालु अपना व्यवहार
संस्कारों की डोर अनोखी
थाम के चलनी इन्हीं से सीखी
परिवारों को समीप लाते
ये रिवाज ही तो समाज बनाते
आओ निभाएं परंपराएं
संस्कृति सनातन आगे ले जाएं
इनसे जगमग है हर त्योहार
इनके बिन सूना है संसार
हां लेकिन इतना हम समझे
अंधी रीति में ना उलझे
सोचे समझे और करें विचार
फिर सभी निभाएं लोक व्यवहार ।