चलो मैं तुम पर एक कविता लिखता हूँ.
चलो मैं तुम पर एक कविता लिखता हूँ.
देखो मैं जानता हूँ कि तुमने
मुझे उदास होते देखा है
जब कभी भी तुम उदास हुई हो
मैंने तुम्हारी आँखों में आंसू भी तैरते देखे है
जब कभी मेरी आँखे
आंसुओ से नहाई है
तो इसे मैं प्यार कह दूँ
नहीं जल्दबाजी होगी ,
तो फिर मैं इसे दोस्ती कह दूँ
नहीं सिर्फ वक़्त की बरबादी होगी
चलो ठीक है..इसे समझते है..इसे जानते है
चलो मैं तुम पर एक कविता लिखता हूँ
तुम कौन हो ?
तुम एक जवान होती हसीन लड़की हो
ऐसा तुम्हारे बनते हुए शरीर से लगता है
तुम शहर के साधारण परिवार की एक नाजुक सी लड़की हो
ऐसा तुम्हारे श्रृंगाररहित चेहरे और फीके कपड़ो से लगता है
तुम एक समझदार सी लगने वाली बेवकूफ लड़की हो
ऐसा तुम्हारे सोच समझकर मुस्कुराने की आदत से लगता है....
और
और तो तुम में कुछ भी खास नही है
मैं रोज तुम जैसी लड़कियां देखता हूँ
जो हर दिन मरती रहती है जीने के लिए
जो हर दिन घुटती रहती है साँस लेने के लिए
देखो मैं तुम्हारी कहानी नहीं जानता
मगर वो इससे अलग क्या ही रही होगी
तुम वो हो जो कभी इस दुनिया में आने से पहले तो कभी आने के बाद मार दी जाती है
तुम वो हो जिसे बराबरी का दर्जा सिर्फ बातों में दिया जाता है
तुम वो हो जिसे कभी भी अपना घर नहीं मिलता
तुम वो हो जिसकी इज्जत अनमोल होकर भी कौड़ियों के भाव बिकती रही है....
तुम एक लड़की हो ..एक मजबूर लाचार लड़की
मगर मैं चाहता हूँ कि तुम वो सब न रहो
जो मैंने अपनी इस कविता में बताया है
मैं चाहता हूँ कि तुम खुद पर एक कविता लिखो
जो मेरी कविता जैसी काली मनहूस न हो