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Aditi Sharma

Abstract

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Aditi Sharma

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चलो ज़रा उस पार जातें हैं

चलो ज़रा उस पार जातें हैं

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चलो ज़रा उस पार जाते हैं

और इस बार सिर्फ खुद से ही प्यार करते हैं।

चलो ज़रा इस शाम की तरह ढलते हैं,

खुद ही गिर कर, खुद ही संभलते हैं,

चलो ज़रा उस पार चलते हैं।


आज घुलते हैं, मौसम में फिज़ा की तरह, 

कुबूल करते हैं ज़िंदगी, एक दुआ की तरह

इस बार खुद ही, खुद की उमीद बनते हैं,

खुद को एक ग़ज़ल समझ कर, दो दफा और पड़ते हैं,

चलो थाम के ख़ुद का हाथ, हम उस पार चलते हैं।

चलो ज़रा उस पार चलतें हैं,

और इस बार सिर्फ खुद से ही प्यार करते हैं।

चलो ज़रा इस शाम की तरह ढलते हैं,

खुद ही गिर कर, खुद ही संभलते हैं,

चलो ज़रा उस पार चलतें हैं।


आज घुलते हैं, मौसम में फिज़ा की तरह, 

कुबूल करते हैं ज़िंदगी, एक दुआ की तरह

इस बार खुद ही, खुद की उमीद बनते हैं,

खुद को एक ग़ज़ल समझ कर, दो दफा और पड़ते हैं,

चलो थाम के ख़ुद का हाथ, हम उस पार चलते हैं।



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