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चिंगारी

चिंगारी

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सपनों की आग तो मेरे भीतर जलती है,

मगर उससे कोई और जलता है ।

अंगारे तो मेरे भीतर सुलगते है,

मगर धुँआ कहीं और उठता है ।

मुझे तो उस आग की तपन न तड़पाती है,

मगर दुनिया को फिर भी मेरी चिंता सताती है।

वक्त वक्त पर पानी की बौछारे डालते है वो

आग बुझाने को,

एक बार बुझती तो है आग मगर न बनती है राख क्योंकि भूल जाते है वो

कोने में धधकती चिंगारी को



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