चिमनियां वायु में विष घोले
चिमनियां वायु में विष घोले
चिमनियां वायु में विष घोले,
कैसे रुकने ये पाएगा।
क्या कभी कुचलने फन कोई,
आगे बढ़कर भी आएगा।
फैला ये जहर हवाओं में,
पल पल मारे है अंदर से।
इन हालातों पर गौर करें,
पानी पहुंचा ऊपर सर से।
न संभाले अब भी हम तो फिर,
ये वक्त कहर खुद ढाएगा।
क्या कभी कुचलने फन कोई,
आगे बढकर भी आएगा।
ये काला जहर हवाओं का,
जब पानी में घुल जाएगा।
हर जीव पड़ेगा संकट में,
बंजर ये भूमि बनाएगा।
सावन बरसेगा आँखों से,
तब ढ़ाढस कौन बंधाएगा।
क्या कभी कुचलने फन कोई,
आगे बढकर भी आएगा।
कैसा विकास ये लाशों पर,
चढ़कर जो तांडव करता है।
अंधे, बहरे, लूले, लंगड़े,
पैदा करता कब डरता है।
जख्मों की कीमत पर रोटी,
ये देकर किसे रिझाएगा।
क्या कभी कुचलने फन कोई,
आगे बढ़कर भी आएगा।
इन कंक्रीट के जंगलों में,
क्या पौधे हरे भरे होंगे।
जीवन तो होगा देहों में,
पर अरमां मरे मरे होंगे।
धनवान गरीबों का अंतर,
बढ़ता "अनंत" ये जाएगा।
क्या कभी कुचलने फन कोई,
आगे बढ़कर भी आएगा।
