छंद
छंद
कब तक बरसें बन घन पांखें,
अधरों पर लव सूखी शाखें
खुद से कितनी चलती नावें,
देखन कों बंजर हो गयी आंखें
बहुत सरल है रो कर हँसना,
पर मुश्किल हसकर रो पाना
बनी प्रतिस्ठा कहीं खो न जाये,
इस का भी डर है जाना
बन कर फक्कड़ हम निकले हैं,
क्या खोना क्या है पाना
नजर उठा कर गौर से देखो,
आज नहीं तो कल है जाना।