छांव
छांव
कोई सुकून की छांव ढूंढ रहा है,
कोई प्रीत का गाँव ढूंढ रहा है,
कोई आज भी राहों की तपिश सहनकर,
अपने बचपन की नाव ढूंढ रहा है।
कोई भूखे बच्चों की रोटी ढूंढ रहा है,
कोई इज्ज़त वो खोटी ढूंढ रहा है,
कोई आज भी बरगद की संदिल छांव,
सुकून के दिनों की गोटी ढूंढ रहा है।
कोई राहत का बादल ढूंढ रहा है,
कोई छांव का आँचल ढूंढ रहा है,
कोई बड़ी कठिन यात्रा कर,
अपने घर का आंगन ढूंढ रहा है।
कोई ख्वाबों का आशियाना ढूंढ रहा है,
कोई इश्क़ सूफियाना ढूंढ रहा है,
कोई सब कुछ मिल जाने के बाद,
हक़ीक़त का फसाना ढूंढ रहा है।
किसको मिलेगा क्या यहाँ,
आख़िर इस शून्य में क्या ढूंढ रहा है,
कोई जीने का सबब ढूंढ रहा है,
कभी मरने का अस्बाब ढूंढ रहा है।