STORYMIRROR

aparna ghosh

Others

4  

aparna ghosh

Others

प्रकृति

प्रकृति

1 min
341

प्रकृति का नियम है, हर अंत का आरंभ,

कुछ भी नहीं खोता है, सब कुछ है प्रारंभ।


जो बर्फ पिघल जाती है, वह नदी कहलाती है,

वही नदी वाष्प बन, फिर बर्फ को बनाती है,

फल जो गिर जाता है, एक और वृक्ष बन जाता है,

कभी देखा कोई वृक्ष, गिरे फल को अश्रु बहाता है।


प्रकृति में कभी, ना लोभ, ना नुकसान है,

दर्द, क्रोध में फंसा हुआ, कोई है तो बस इंसान है,

दर्द उसको होता है, क्योंकि वफा चाहता है,

प्यार कहाँ करता है, केवल नफा चाहता है।


प्रकृति केवल, कर्म अपना करती है,

फल की आशा क्या करे, प्रशंसा को भी शर्म करती है,

और हम उसी के तत्व, सिर्फ नोच के खाते हैं,

क्या पता हमें माँगना, हम तो सिर्फ हक जताते हैं।


और आज वो दिन आया है, जब प्रकृति हमसे रूठ गई ,

जो कड़ी हमारा जीवन थी, वो कड़ी कहीं अब छूट गई ,

अब भी खत्म कुछ नहीं हुआ, चाहते हम तो राह है,

खुदा बनना बस छोड़ते हैं, उसके दिल में जगह अथाह है।


हम मालिक नहीं, दास हैं उस भूमि की जो माता है,

उस माटी पर हक सिर्फ हमारा नहीं, वो सब की अन्नदाता है,

एक बार चलो अंत से, फिर आरंभ रचाते हैं,

हक छीनते नहीं, चलो अदब से हाथ फैलाते हैं।



Rate this content
Log in