ख़ुशबू
ख़ुशबू
क्यों छुपाते हो?, कुछ नहीं बताते हो,
गुस्सा आता है?,एक सांस में पी जाते हो,
चलते तो हो साथ,अंदर से छलते जाते हो,
गले लगाते हो,पर दिल से बुरा चाहते हो?
क्यों ये दिखावा ,क्या सिद्ध करना चाहते हो?,
मन ईर्षा से जलता है,तो क्यों दोस्ती जताते हो?
बन जाओ ना खुशबू सा,महक अपनी फैला दो,
जैसे भी हो तुम, खुद को खुद से तो मिलवा दो।
बनो मिट्टी की खुशबू सा,जब दिल भर आए,
बनो बाग की महक सा,जब किसी पर प्यार आए,
बनों बारिश की ठंडी महक,जब दिल खुश हो जाए,
दो ओस की नतशिर सुरभि,जब गलती कोई बताए,
बनों नीम की कड़वी सुगंध,जो किसी को समझाओ,
फिर दो रजनीगंधा सी महक,और प्रेम से उसे बताओ,
ग्लानि,गुस्से और कटुता की महक भी बेबाक फैलाओ,
पर हमेशा आशा के भोर से ज़िन्दगी की महक बनाओ,
बस खुद को तुम प्रकृति सा,निर्भय और स्थिर बनाओ,
अपने अंतस की खुशबू से, गंदगी में भी महक जाओ।।