बरगद का पेड़
बरगद का पेड़
आज भी मुझे याद है वो गोल चबूतरा,
वो बरगद के पेड़ और उसकी ठंडी छांव,
वो बचपन की अनमिट स्मृतियाँ,
और मेरे बचपन को समेटे दादी का गाँव।
उस पेड़ पर पड़ते थे सावन के झूले,
लगती थी गांव की चौपाल,
कुछ लोग हमेशा ही बैठे मिलते थे वहाँ,
मिलते ही उनको समझ लेते थे गाँव का हाल।
पंछियों का कलरव हर सुबह,
बच्चों की धमाचौकड़ी हर शाम,
महिलाएं बांधती थी कलावा वटवृक्ष को,
मांगती "सावित्री" सा वर अविराम।
अभी भी कहीं देखती अगर,
कोई बरगद तो थम जातें मेरे पाँव,
याद आ जाता है बचपन मेरा,
और वो बरगद और दादी का गाँव ।
कितना कुछ सिखाया एक वृक्ष ने,
विन्रमता, एकजुटता और सेवाभाव,
समझाया विशाल कोई तभी बनता है,
जब हो उसके जड़ो में गहराव ।।