चाँद को जब देखता हूँ
चाँद को जब देखता हूँ
चाँद को में जब-जब देखता हूँ
अपनी मंजिल की राहें देखता हूं
ये हरपल मुझे याद दिलाता है
तुझे छूने है आसमाँ को साखी
हरपल मुझे ये बात बताता है
जितना घना अंधेरा होता है
उतनी शिद्दत से इसे देखता हूं
ये मुझे जलना है,दीपक सा,
ये पाठ रोज सिखलाता है
चाँद को में जब-जब देखता हूँ
मुझे मेरा लक्ष्य याद आता है
शोले में शबनम बनना है
ये तन्हाई में जीना सिखाता है
हे चाँद तुझे बार-बार देखकर,
हे चाँद तुझे हर बार देखकर,
मेरी रूह में उजाला आता है
कर्म करने का, कुछ कर गुजरने का
नवउत्साह मेरे भीतर हो जाता है
चाँद को में जब-जब देखता हूँ
अपनी मंजिल की राहें देखता हूँ।
