चाल ऐसी चली
चाल ऐसी चली
बंदरों से बढ़कर अब नौनिहाल हो गए ,
चाल ऐसी चली कि बेचाल हो गए,
गम ए सूरत क्या छिपाना बचपन का,
खोया बचपन तो बेमिसाल हो गए ,
सोचा था कि बचपन लौट कर कभी आता नहीं,
हुनर ऐसा कि ये अब तो कभी जाता नही,
पर इसे गुजरे हुए अस्सी साल हो गए ,
बंदरों से बढ़कर अब नौनिहाल हो गए ।