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Poonam Chandralekha

Abstract

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Poonam Chandralekha

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चाहत

चाहत

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सुनो न !

चुपचाप खड़ा

एक साया सा था

उस दरख़्त के साये में 

मैंने पूछा -कौन हो ?


चुप क्यों खड़े हो ?

धीमी आवाज़ में बोला,

कभी लहराता था मैं

हरा भरा था

पर, अब नहीं हूँ

तरक्की की राह में रोड़ा बता कर

काट डाला गया मैं

इसी दरख्त का साया हूँ,


चाहता हूँ

कि ज़िंदा रख सकूँ

आदमीयत के साये को

बस ...अब

किसी आदमी के इंतजार में हूँ।   


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