चाहत
चाहत
एहसास है मुझे तेरी चाहत के दीदार का
बेपनाह इश्क़ का फितूर थामे दीवानगी में तेरी
डूब जाऊँ अगर उस गहराई में
समुन्दर को में फिरदौस का गुलशन कर दूँ
ये गलतफहमी ना पालना जानम
कहीं पता चले इस चाहत में तुम गुनाह कर बैठो
गैर थे वो पल जो एक गुफ्तगू में फनाह हो गये
इस जुस्तजू में दबे जिस्म का जज़्बा अब भी बेकरार है
मत भूलना ये हसरत ही इतनी खुशनुमा है

