चाह।
चाह।
मैं तुमसे मिलना चाहता हूं, मैं तुम में मिलना चाहता हूं
इतने करीब होकर भी, कुछ तुमसे कहना चाहता हूं
समाई हो तुम मेरे अंग संग में, फिर भी एहसास कमी का होता है
नजरों से गर ओझल हुई तो, दिल का तेज धड़कना होता है
लबों पर तुम्हारा नाम, हरगिज़ ना मिटने देती है
तुम्हारी चाहत का है ऐसा असर, जो रात में न सोने देती है
रोज-रोज के मिलने से, अब डर दुनिया का लगता है
मिलन की भी कोई सीमा है, रो-रो कर दिन कटता है
दुनिया वालों की नज़रों में, हम तो अब बदनाम हो गए
मिलने का सिलसिला कब खत्म होगा, हम तो अब बर्बाद हो गए
अब तुमसे ही आस लगी, इस विरह मिलन को मिटने दो
चाह हमारी रंग लाएगी, दुनिया कहती है कहने दो
लैला- मज़नू तो अमर हो गए, अब हमें भी अमर होने दो
अगर इस जीवन में ना मिल सके तो, आत्मा को मिलने दो
दो प्रेमियों की इस कविता को, लोगों को पढ़ने दो
हम तुम में ना मिल सके, तो औरों को मिलने दो।