बुद्धि की महिमा==========
बुद्धि की महिमा==========
बुद्धि ना चुरा सकता,
कोई कितना बड़ा चोर।
बुद्धि को कर इकट्ठा,
नई़ तो ढोर का तू ढोर।
घट बूंद से भराता,
तुम रखो सही ओर ।
पत्थर निशान पड़ते,
खींचे पानी की डोर।।
पक्षी भी पढ़ते सुन के,
तोता मैना लगा जोर।
पशु भी इशारा समझें,
हित प्रेम बंधें डोर।।
कोई सीखा नहीं आता,
सब सीखे लगा जोर।
पांव तान के न सोओ ,
ज्ञान पाने लगा जोर।।
गुरु मात और पिता का,
तू वचन सुना थोर ।
थोड़े वचन को तू समझे,
होए ज्ञानियों में शोर।।