बुढ़ापा
बुढ़ापा
खिदमतो के दरम्या देखो हम खिताबी हो गए।
बचपन के लड़कपन को छोड़ा तो उम्रदराजी हो गए।
इसीलिए आज भी जिंदा रखो वो कहानियों का समरस
वो मौलिकता और आभास,अठहास
भूल चुके गर सारी बाते,समझो तकाजी हो गए।
आसमान का रंग है फीका,आंखों में धुंधलापन छाया
दूर नजर से भांपा करते,वाशिंदा भी लगता है पराया
जब सफेदी का रंग बिखरा तो,झुम्लो के जवाबी हो गए।
हाथ छड़ी मैं ले बैठा,खिड़की से परिंदा उड़ते देखा।
मेरा पुराना दोस्त जा रहा,बच्चो का सहारा लेते देखा।
आंखो की पुतली गुम रही,ग्रंथो के किताबी हो गए।।
बचपन के लड़कपन को छोड़ा तो उम्र दराजी हो गए।।
