STORYMIRROR

manju rani

Abstract Inspirational

4  

manju rani

Abstract Inspirational

बुद्ध

बुद्ध

1 min
326


सब गीता, वेद, पुराण पढ़े

गंगा में डुबा तन शुद्ध हुआ

तज कर देखा घर, सुत, नारी 

पर मन से न मैं बुद्ध हुआ 


तुम सा चिंतन कैसे पाऊं

सब छोड़ के कैसे मैं जाऊं

मेरी रूह बंधी है पिंजरे से

पिंजरा टूटे मैं उड़ जाऊं


कुछ यूं संघर्ष किया मैंने

जीवन ही मेरा एक युद्ध हुआ

पर मन से न मैं बुद्ध हुआ 


आंखों को रही मंजुल की चाह

कदमों ने मांगी सुगम राह

कानों ने चाही वाह वाह

तप पल में कर डाला सुआह


जब कुछ मन चाहा न पाया

तो ये पागल मन क्रुद्ध हुआ

पर मन से न मैं बुद्ध हुआ।  



Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract