बसंती बहार
बसंती बहार
सतरंगी पुष्पों में ये रंगोली
सौरभआली मदमत्त खुद में अनोखी
इतनी शौकत कहाँ से लाए, दिल छेदन सी
लोलुपता भर आए, दिल में हुड़दंग क्यों मचाये।
आये बिन वैषम्य के
छाये बसंती बहार।
अरण्य देव की क्या कसम, कौन जाने?
रंगीले वसन, धृत मुरैठा, मदमत्त मन कौन पहचाने?
निगाह रोमांच बदन पर, दीवाने पतिंगे
परिहार है बहारों की, जश्न से जन - जीवन सींचेंगे।
आये बिन वैषम्य के
छाये बसंती बहार।
है प्रकृति की
परितोष जन - जन को बांटा है
परीजाद देख माधव की
दिल का दौरा बढ़ गया है
पुष्पों की इस सोहबत में
छैला मन उत्तेजित है
अनोखी प्रकृति की इस साया में
जन - गण उल्लसित हैं।
आये बिन वैषम्य के
छाये बसंती बहार।
जन - मन - बदन में सुगंधित तरंग है
मन श्रृंग पर, माधव मधुराई आलिंगित है
निर्मूल वैभव साथ में, कोई शुबहा नहीं
सौदाई वह खुद में, किसी से वैमनस्य नहीं।
आये बिन वैषम्य के
छाये बसंती बहार।