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है प्रकृति की परितोष जन - जन को बांटा है है प्रकृति की परितोष जन - जन को बांटा है
काँटों की राह में सहिष्णु पथिक यह जादू - सा यजमान काँटों की राह में सहिष्णु पथिक यह जादू - सा यजमान
कहीं शहरीकरण का दुष्प्रभाव तो नहीं है न ये ! सोचो हे साखी। कहीं शहरीकरण का दुष्प्रभाव तो नहीं है न ये ! सोचो हे साखी।