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SURAY PRAKASH UPADHYAY

Romance

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SURAY PRAKASH UPADHYAY

Romance

बसंत

बसंत

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किसने जादू फेरा यह धरती ने ली अंगड़ाई,

हरित वसन नाना आभूषण अंगों में तरूणाई।


मलय पवन के झोंकों से अलसी फल से आवाज,

रून झून नुपूर मटर की छेमी कंगना की छवि साज।


मह-मह मंजर से धरती झुकी रसाल की डाली,

किसलय से भरपूर सजें सीसम,पीपल की डाली। 


मत मधुप मदमाते फिरतें थिर की आज तितलियाँ, 

शुक शारिका प्रेम विह्वल हो रहे मना रहे रंगरलियां। 


आया यह मधुमास पुष्प व धन्वा के अभिनंदन में, 

आज रति करने विहार आ पहुंची प्रेम मग्न में। 


युवती जनों में बरसों की सुलगी अनंग की आग, 

कहत "गंवार" अबीर थाल ले आ

पहुंचा स्वागत करने ऋतुराज। 


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