'मानहु प्रकृति रचना विचित्र'
'मानहु प्रकृति रचना विचित्र'
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शीश झुकाई चरण कमल में हे प्रभु जग के पालन हार,
सूरज, चाँद, सुनहरा किरण, सुनर सुखद बेयार।
भरल तरेगन कच-कच जइसे छितराइल मोती के हार।
जंगल, झाड, नदी, नाला, झरना पहाड़ केसर कतार।
मन मोहक मंदार मोगरा, फुल गुलाब अति सुकवार,
कईसे रचनी ई प्रकृति के,समझ ना आवे कहत 'गंवार' !
