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SURAY PRAKASH UPADHYAY

Others

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SURAY PRAKASH UPADHYAY

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'मानहु प्रकृति रचना विचित्र'

'मानहु प्रकृति रचना विचित्र'

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शीश झुकाई चरण कमल में हे प्रभु जग के पालन हार, 

सूरज, चाँद, सुनहरा किरण, सुनर सुखद बेयार। 

भरल तरेगन कच-कच जइसे छितराइल मोती के हार।

जंगल, झाड, नदी, नाला, झरना पहाड़ केसर कतार। 

मन मोहक मंदार मोगरा, फुल गुलाब अति सुकवार, 

कईसे रचनी ई प्रकृति के,समझ ना आवे कहत 'गंवार' !

      


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