" बसंत ऋतु का सौंदर्य "
" बसंत ऋतु का सौंदर्य "
उपवन में जाने कौन सा फूल खिला है
कोमल ,मृदुल पंखुड़ियां हैं उसके
प्रकृति के वरदान स्वरूप है
शांत, स्निग्ध छटा हैं जिसके .....।
बसंती हवा चली है चहुं ओर
जिसकी खुशबू से ही महकी है
शीतल, मंद पवन सरबोर
जिससे पक्षी भी यहाँ चहकी हैं।
' सूर्यमुखी ' मैंने भी जब देखा पहली बार
ऐसा लगा किसी कवि की कल्पना हो
निराशा के समंदर में हर्ष हुआ अपार
अब तक संशय था कहीं वो सपना ना हो ।
दूर अनंत कहीं गगन में जैसे
बदली से कहीं चाँद निकल आया हो
इन्द्रधनुष के सतरंगी प्रकाश में
ओस की बूंदों से कोई नहाया हो.....।
आँखों में है झील सी गहराई
जहाँ कोई तस्वीर बसी दिखती है
जुल्फें हो जैसी काली घटा
जहां अमृत धारा बहते दिखती है ।
उसके एक मुस्कुराहट से ही
वीराने में भी फूल खिल जाए
होंठो पर जो काला तिल है
उसके सौंदर्य में चार चाँद लगाए।
जिधर भी निगाह करते हैं
फूलों की बरसात करते हैं
कोई परी या ख्वाब हो तुम
कवि तो बस एक मुस्कान को तरसते हैं ।

