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SNEHA NALAWADE

Abstract

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SNEHA NALAWADE

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बस नजर...

बस नजर...

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हर कोई चाहता है कि

हम और हमारे दो बच्चे ऐसे ही रहे

पर कहीं ना कहीं इस वजह से

बच्चो को होते हुए भी अपनो का प्यार नहीं मिलता

अपने होते हुए भी पराए हो जाते हैं

इस बात को हम झूटला नहीं सकते आखिर

पर क्या करे वक्त बदल गया है

रिश्तों के माइने भी बदल गए है

यह जो हमारी पृथ्वी है

जिस पर अलग अलग तरह के लोग है

ये लोग कौन है आखिर ??

ये कोई और नहीं अपने ही हाँ- हाँ अपने

इसलिए की यह पृथ्वी एक परिवार ही है

जो अपने ही लोग हैं सिर्फ देखने का नज़रिया चाहिए

तो क्यों ना इस पृथ्वी को अपना परिवार माने

और खुश रहे !


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