बंजारा
बंजारा
बंजारा बनकर भटकता रहा हूँ मैं
बस इधर से उधर इस दुनियाँ में
कभी चैन मिला ना मेरे रूह को
किस सफर में चलता रहा हूँ मैं।
बस उसकी तलब थी मुझको
हरपल हरदम इस जिंदगी में
मेरी प्यास कभी बुझ सकी ना
जिए हमेशा ही हम बेखुदी में।
सांसे चलती रही मेरी पर हम जिंदा नहीं थे
बेवफा करके भी वो क्यों शर्मिंदा नहीं थे?
हर कोई वफा कर नहीं सकता ये जानते थे हम
लेकिन वो भी बेवफा निकलेंगे ये मानते नहीं थे हम।
वक्त ने मेरे साथ क्यों नाइंसाफ़ी की?
क्यों मोहब्बत में मुझे इंसाफ ना मिला?
मैने तो दिल से मोहब्बत किया था उसे।
फिर क्यों मुझे उसका कभी साथ ना मिला?
उसका साथ ना मिला इसका मुझे गम तो है
उसकी याद में मेरी आँखें आज भी नम तो है
लेकिन इस दुनियाँ में वो मुझे ना मिला तो क्या हुआ
रूह बनकर उस दुनियाँ में कभी तो उससे मिलूंगा मैं।