बंद गलियों में
बंद गलियों में
दिल की बंद गलियों में,
यादों की अंगीठी जल रही है
गुमसुम शहीदों के याद में
आँखों से अश्क ढल रही है I
मैं तब भी मजबूर था
तब मेरा जन्मजात नहीं हुआ
मैं आज भी मजबूर हूं
मेरी औकात नहीं हुई
फिर भी मेरी संवेदना मरी नहीं है
हृदय के इन तंग नलियों में
यादों की अंगुठी जल रहीं है
दिल के बंद गलियों में
तेरी कुर्बानी पर
चंद शब्द ही काफी नहीं है
हाँ जड़ है यहीं जो
काबिले माफी नहीं है
हमने रची कुर्सी और
कुर्सी के पीछे भाग रहे हैं
तू जिस जिगर का टुकड़ा
तेरे जिगर का टुकड़ा मुसीबत भांप रहे हैं
तेरी शहादत इन्सानियत न फूंक सका
इन नामर्द छलियों में
यादों की अंगुठी जल रहीं है
दिल के बंद गलियों में !