बिखरा ख्वाब
बिखरा ख्वाब
अच्छा है बापू आज हम बीच नहीं हैं।
गुलामी से आज़ाद कराने, बापू ने किया प्रस्थान
लेकिन क्या पता था देश का टुकड़ा होगा
एक हिंदुस्तान और एक पाकिस्तान।
जीतने निकले थे, अंग्रेजो से भिड़ने निकले थे
रखने अपनी धरती के मान,
चले गये अंग्रेज़ लेकिन जीत गए वे
बनाके हिंदू और मुसलमान।
अफसोस अपने मौत का न किया होगा
जब लगी थी नाथूराम से गोली,
बापू का दिल तो तब धड़कना बंद हो गया होगा
जब लगी बँटवारे की बोली।
देखा था ख्वाब
एक प्रदेश, एक जान और एक समृद्धि का
लेकिन सो गये दुखो की सेज पर
देखते हुए ख्वाब एक नए किरणों का।
कभी ना सोचा
ऐसे हिंसात्मक और फरेबी जैसा देश,
हमेशा देखा
धरती माँ का श्रृंगार वाला भेस।
शायद बापू बंटवारे को भी स्वीकार करके जी लेते,
लेकिन ये हैवानियत और भ्रष्टाचार समाज देख के
फिर बिखर जाते,
अच्छा है बापू आज हम बीच नहीं हैं।